महाराणा प्रताप
राजस्थान वीर राजपूतों की जन्मभूमि रही है कि जिन्होंने समय-समय पर
राजपूती आन और भारत माता की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बलि दे दी । इन्हीं
वीर राजपूतों में से भारत माता के एक सपूत महाराणा प्रताप भी थे।
महाराणा प्रताप का जन्म ९ मई सन् १५४० ई. में चितौड के राजघराने में
हुआ। इनके पिता जी का नाम उदयसिंह और दादा जी का नाम महाराणा साँगा
था। महाराणा प्रताप के जीवन पर इनके वीर दादा का गहरा प्रभाव पडा ।
पिता की मृत्यू के बाद महाराणा प्रताप उदयपुर के सिंहासन पर बैठे। सिंहासन
पर बैठते ही उन्होंने प्रण किया, 'जब तक मैं चितौड न लौटा लूँगा, तब तक भूमि पर
सोया करुँगा, पत्तों पर भोजन करुँगा और मूँछों पर ताव नं दूँगा ।'
उस समय अकबर मुग़ल सम्राट था । वह बडा ही नीति-कुशल था । उसने जो
बहुत से राजपुत राजाओं को लोभ देकर उन्हें अपने अधीन कर लिया था । राजपूत
राजा अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं करते उनके राज्य पर मुगल सेना अधिकार
कर लेती । अकबर ने चितौड पर भी अपना अधिकार कर लिया जिससे उदयसिंह को
चितौड छोडकर उदयपुर नगर बसाना पडा ।
इयत्ता नववी कुमारभारती*
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महाराणा प्रताप ने अकबर की अधीनता स्वीकार करने से इंकार कर दिया ।
तभी से अकबर महाराणा प्रताप की शक्ति को कुचलने के उपाय करने लगा । सन्
१५७६ ई. में हल्दी घाटी के मैदान में महाराणा प्रताप का अकबर के साथ युध्द हुआ
। महाराणा प्रताप ने बडी वीरता के साथ युध्द किया किन्तु अकबर की विशाल सेना
के सामने वह न टिक सके और अपने प्रिय घोडे चेतक पर सवार होकर जंगलों में जा
छिपे ।
महाराणा प्रताप बीस वर्षों तक जंगलों में मारे-मारे फिरते रहे। इस बीच उन्हें
कई कष्टों का सामना करना पडा परन्तु उन्होंने साहस व धैर्य का दामन नहीं छोडा ।
धनी भामाशाह से अपार धन की सहायता कर उन्होंने फिर से सेना इकटठी की और
इस बार उन्होंने अकबर से टक्कर लेकर अपने खोये हुए किलों पर फिर से अधिकार
कर लिया ।
भारत-माता के सच्चे सपूत महाराणा प्रताप की सन् १५९७ ई. में ५७ वर्ष की आयु
में मृत्यु हो गई ।
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